“ये है विविध भारती. दिन के डेढ़ बजे हैं और आप सुन रहे हैं मनचाहे गीत. आज के पहले गीत को गाया है उषा मंगेशकर ने, संगीत दिया है राम लक्ष्मण ने और गीतकार है रविंद्र रावल. फिल्म है तराना.”
तभी उषा ताई ने गाना शुरू किया. “सुल्ताना, सुल्ताना, मेरा नाम है सुल्ताना, मेरे हुस्न का हर अंदाज़ मस्ताना.”
इतने में मेरा मोबाइल फ़ोन बजने लगा और मैं आजकी दुनिया में वापस आया.
चिंटू जी बहुत दिन के बाद फ़ोन कर रहे थे.
न दुआ न सलाम, सीधे सीधे पॉइंट पर आ गए: “पिताजी नहीं रहे.”
“क्या हुआ?”
“पता नहीं.”
“पता नहीं?” मैंने पुछा.
“कल तक तो ठीक हो रहे थे. आज सुबह सुबह अस्पताल से फ़ोन आया.”
“हम्म,” मैं कुछ और नहीं कह पाया.”
“अकेले थे अस्पताल में. मैं यहाँ फसा हुआ हूँ और भैया अलग अस्पताल में भर्ती हैं.”
“तो फिर?” मैंने पूछा.
वो समझ गए मैं क्या पूछ रहा था और सीधा सटीक जवाब दिया: “भैया के साले साहब ने अंतिमसंस्कार करवाया. उनका अभी अभी फ़ोन आया था.”
“अच्छा.”
“लाइन लगी थी इलेक्ट्रिक क्रेमाटोरियम में. बाइसवी बॉडी थी पिताजी की.”
“हम्म.”
“साले साहब बहुत ही बुरी स्थिति में है. फूट फूट कर रो रहे थे फ़ोन पर.”
“बहुत शॉक लगा होगा.”
“बड़ी मुश्किल से चुप कराया.”
“अच्छा.”
“सोचा था, बाहर जाऊँगा. थोड़े पैसे कमाऊंगा और माँ बाप को खुश रखूँगा. सब गड़बड़ हो गया. पिताजी अंत में अकेले रह गए और मैं उनको आखिरी बार भी नहीं देख पाया.”
“हम्म्म.”
“अच्छा रखता हूँ. भैया का फ़ोन आ रहा है.”
फ़ोन रखते ही. अमेज़न म्यूजिक पर उषा ताई ने आगे का गाना शुरू किया, एकदम फकीरी अंदाज़ में: “मैं आज यहाँ, कल जाने कहाँ. बंजारों का कब कोई ठिकाना. सुल्ताना, सुल्ताना, मेरा नाम है सुल्ताना, मेरे हुस्न का हर अंदाज़ मस्ताना.”
बायें वाले फ्लैट में कोई मन की बात सुन रहा था.
नीचे वाले फ्लैट में प्रेशर कुकर बार बार सीटी दे रहा था. लगता है, हर रविवार की तरह आज फिर मटन पक रहा था.
बाहर बरामदे में, मेरे दायें वाले फ्लैट के बाप और बेटा क्रिकेट खेल रहे थे.
“शार्ट पिच बोलिंग मत डाल,” बाप ने बेटे से कहा.
“अरे पर बुमराह आईपीएल में ऐसे ही डालता है,” बेटे ने जवाब दिया.
क्रिकेट के साथ साथ, एक छोटी लड़की अपनी साइकल को धीरे धीरे बरामदे में चला रही थी.
नीचे रोड पर कोई पानी की कई बाल्टियां, जो एक लकड़ी के फट्टे पर लदी हुई थी, जिसके नीचे चक्के लगे थे, घसीट कर ले जा रहा था.
रोड के सामने वर्ली बस स्टैंड में लाउडस्पीकर पर अनाउंसमेंट चालू थी और बसें आ जा रही थी.
सोचो तो दुनिया बर्बाद हो रही है. और फिर से सोचो तो कुछ नहीं हुआ.
गाना बदल चुका था.
उषा ताई जा चुकी थी. हेमलता आ गयी थी.
“ये आसमान ये बादल ये रास्ते ये हवा,
हर एक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने से.”
जो भी कहा जा सकता था, निदा फ़ाज़ली कह गए थे.
“ये ज़िन्दगी है सफर,
तू सफर की मंज़िल है.”