आज से शिक्षित बेरोज़गारी का बारहवां (12th) साल शुरू हो गया है.
अमूमन इस सालगिरह पर लिखने को काफी कुछ होता है. इस बार, बेरोज़गारी कि तरह, दिमाग भी कुछ सुन्न सा चल रहा है. जब शुरू किया था तब ये उम्मीद नहीं थी कि ग्यारह महीने भी चलेगा, पर लिखते-लिखते ग्यारह साल हो गए. Time Flies!
और जैसे कि माँ-बाप तब पुछा करते थे जब हम कम उम्र दराज़ थे, आज भी प्रश्न हमेशा कि तरह यहीं है, आगे का क्या सोचा है? हालात जैसे चल रहे हैं उन्हें देखकर ये लगता नहीं कि हमारे जैसा लेखन और हम जैसों का लेखन ज़्यादा दिन चलने वाला है. और यहाँ ईमानदारी से ये मानूंगा कि लेखक हूँ एक्टिविस्ट नहीं. तो अंदाज़ा ये है कि जिस तरह कि शिक्षित बेरोज़गारी अब तक चली है वो शायद साल भर और चले. उसके बाद का तो मुश्किल लगता है.
तो फिर? अब नौकरी करने लायक हम रह नहीं गए हैं और अगर हम करने का मन बना भी ले तो कोई देगा नहीं (अब इस उम्र में क्रेडिट कार्ड बेचना तो हमारे बस की बात है नहीं. और mba में जो भी पढ़ा था वो तो उस समय भी समझ नहीं आया था, तो आज की बात क्या ही करें).
इसलिए हम भी वही करेंगे जो अक्सर फ़िल्मी निर्माता निर्देशक करते हैं जब उनके पास कोई नया आईडिया नहीं होता है; वो sequel बनाते हैं, हम sequel लिखेंगे.
पर sequel लिखने के लिए पहले एक main किताब लिखनी पड़ेगी. तो अगले साल Easynomics का किताबी वर्शन लिखने का इरादा है. उसके बाद Easynomics 2, Easynomics 3, Easynomics 4… इससे कम से कम दाल रोटी का गुज़ारा तो हो ही जायेगा.
और अगर केक वगैरह खाने का मन हुआ तो फिर उसके लिए क्राइम फिक्शन लिखना पड़ेगा. यहाँ डर ये है कि एक genre जिसमे पढ़ने में मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा आता है वो भी काम का रूप धारण कर लेगा। करना पड़ेगा, क्यूंकि अब तो influencer बन कर bitcoin भी नहीं बेचा जा सकता.