हमारे एक मित्र हैं, जो किन्ही कारणों से सोशल मीडिया से ज़रा बच कर रहते हैं. उनके बचपन और जवानी के दिन थोड़े रंगीन थे. एक आधी गर्ल फ्रेंड ज़्यादा बना ली. अब शादी शुदा हैं. और बीवी से थोड़ा ज़्यादा ही प्रेम करते हैं, या ये कहिये के डरते हैं, या फिर ये कहिये के अब भी खुद पर भरोसा नहीं, कभी कोई पुराणी यादाश फिर से ताज़ा हो जाये, तो फिर क्या करेंगे?
खैर इन बातों को रहने दीजिये.आज सुबह सुबह उन्होंने पुछा, के आज PDDU के बारे में तुमने कुछ नहीं लिखा? मैंने कहां, शाम तक रुकिए सरकार ज़रूर मौका देगी. और कुछ ऐसा ही हुआ. दोपहर को 4-4.30 जब मैं बहुत ही मीठी सी नींद सो रहा था, वित्त मंत्री अरुण भाई जेटली ने Rs 2,11,000 करोड़ के बैंक recapitalisation प्लान की घोषणा की.
कोई भी धंदा करने के लिए अपना पैसा लगता है. इस पैसे को कैपिटल कहते हैं. जब धंदे में नुकसान होता है, तब कैपिटल जो है वो कम होता जाता है. अगर नुक्सान बरकरार रहे, तो एक समय के बाद ये स्थिति आ जाती है के धंदा कम करना पड़ता है, या फिर बंद भी.
अगर इस परिस्थिति को बदलना हो तो धंदे में नया पैसा यानि की नया कैपिटल लगाना पडता है. भारत सरकार 21 बैंकों की मालिक है. इन बैंकों की हालत ख़राब है. आज सरकार ने ये निर्णय लिया के इन बैंकों में और पैसा डाला जाए, की वो ठीक से धंदा कर सके.
प्रॉब्लम ये है, के इन में से काफी बैंक ऐसे है, जो इतना ज़्यादा नुकसान पहले ही उठा चुके हैं, के इनको बैंकिंग के धंधे में होना ही नहीं चाहिए.
और इस से बड़ी बात इतना ज़्यादा पैसा, Rs 2,11,000 करोड़, आएगा कहाँ से? सरकार के पास तो अपना पैसा कुछ होता नहीं। वो ये पैसा आपसे और मुझसे लेंगी. इस लिए एक नया टैक्स, पंडित दीन दयाल उपाध्याय बैंक बचाओ सेस, आना तय है. बस इंतज़ार कीजिये. क्योंकि, जैसा के जावेद अख्तर साहब कह गए हैं, इंतज़ार मोहब्बत का नसीब है.
एक बात और याद दिला दूँ, “there is no free lunch in economics”. किसी न किसी को तो भरपाई करनी पडती है. इस केस में भरपाई करेंगे मैं और आप, ताकि सरकारी दामाद लोगों की नौकरियां बरकरार रहे.
Postscript:
मित्र Manjul का कहना है, के हमारे देश में लोगों को satire समझ नहीं आता, इसलिए मेरी पिटाई जल्द ही होने वाले ही.
कुछ लोगों ने ये पुछा के मैं केवल ;पंडित दीन दयाल उपाध्याय का नाम क्यों लेता हूँ. बार बार उनका ही मज़ाक क्यों उडाता हूँ?
तो उनको मैं ये कहना चाहता हूँ, के पंडित जी का मज़ाक बिलकुल भी नहीं उड़ा रहा हूँ. ये कटाक्ष उन लोगों पर है, जो उनका नाम हर जगह घुसाने में लगे हुए हैं.
ये कटाक्ष उन लोगों पर भी है, जिनको पंडित जी से पहले, केवल तीन और नाम सूझते थे, जवाहर, इंदिरा और राजीव.
बहुत बड़ा देश है हमारा और बहुत सारे नामचीन लोग हुए हैं. थोड़ा उनके नामों का भी इस्तेमाल हो? जैसे के महिंद्रा सिंह धोनी रांची एयरपोर्ट? क्या ख्याल है?