एक थे सुशासन बाबू…

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विश्वस्त सूत्रों से पता चला है के सुशासन  बाबू उर्फ़ निकु की ज़िन्दगी में बशीर बद्र की एक ग़ज़ल का बहुत ज़्यादा असर रहा है.

उस ग़ज़ल के चाँद अशआर कुछ यूँ है:

मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे 
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे

मोहब्बत, अदावत, वफ़ा, बेरुखी
किराये के घर थे बदलते रहे

अब कोई एक जगह जहाँ के मोहब्बत, अदावत, वफ़ा और बेरुखी का मिश्रण खूब चलता है, और लगभग एक साथ चलता है, वो सियासत है .

और सुशासन  बाबू इस बात को खूब समझते हैं…